ये सुनहले पेड़
दिन के
धूप कोठी की हवाएँ बोलती हैं
बात गिन के।
सामने बहती नदी है
कौन तिथि कैसी सदी है
टूटते हर छाँव
तिनके।
नींद में आवाज़ देना
पत्तियों में साँस लेना
जानता हूँ राज
इनके।
फूल थे मुरझा रहे हैं
भीड़ होते जा रहे हैं
चुटकुले भाई-बहिन के।