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सुन्दर बातें / सविता सिंह

जब हम मिले थे

वह समय भी अजीब था

शहर में दंगा था

कोई कहीं आ-जा नहीं सकता था

एक-दूसरे को वर्षों से जानने वाले लोग

एक-दूसरे को अब नहीं पहचान रहे थे

हम एक-दूसरे को पहले नहीं जानते थे

लेकिन इस पल हम एक दूसरे को ही जान रहे थे

तभी तो उसने मेरे बालों को पीछे समेट कर

गुलाबी रिबन से बांधा था

और कहा था--

दंगा यूँ ही चलता नहीं रह सकता

किसी न किसी को यह बात ज़रूर सूझेगी एक दिन

कितनी सुन्दर चीज़ें पाने को पड़ी हैं इस दुनिया में

कितनी सुन्दर बातें कहने को अब भी बाक़ी हैं