सुभ निसान बाजत बृषभान-भौन आज री।
प्रगटी रूप-भरी कुँवारि साँवर-सुख-साज री॥
सुंदरि सब गात चलीं, सरस मधुर गीत री।
सजे सब मँगल-कलस, हिएँ भरी प्रीति री॥
कहत एक-’ह्वै हैं बस या के नँद-लाल री।
दैहैं निज प्रियतम कौं परम सुख विसाल री’॥
‘धन्य भाग्य हमरौ’ एक कहत हँसी बाम री।
‘हमहू सुख दरस-परस पैहैं अभिराम री’॥
दधि-माखन भरे माट सीसन धरि गोप री।
आवत सब गो-रस बरसावत अति ओप री॥
सिव, बिधि, सुरराज, सनक, नारदादि संत री।
आए सब गुप्त, करत कीरति हियवंत री॥