दिन डूबा-डूबा
डूब गए
गाँव, घर, नगर
सूबा-सूबा।
बूँद-बूँद रिस रही हवाएँ
बाहर-भीतर घिरी घटाएँ
सब कुछ लगता
ऊबा-ऊबा।
रात हुई पेड़ टँगे छाते
हरसिंगार अब पढ़े न जाते
अँधियारा अपना
मंसूबा।
दिन डूबा-डूबा
डूब गए
गाँव, घर, नगर
सूबा-सूबा।
बूँद-बूँद रिस रही हवाएँ
बाहर-भीतर घिरी घटाएँ
सब कुछ लगता
ऊबा-ऊबा।
रात हुई पेड़ टँगे छाते
हरसिंगार अब पढ़े न जाते
अँधियारा अपना
मंसूबा।