लाज न बुद्धि सो काज कछू, बनई सब बात बिचित्र नवीनी।
काह कहूँ घनप्रेम तुम्हें, करताहुँ के नाम की लाज न लीनी॥
अष्टमी के निसि को ससि खास, अकास प्रकासन के हित दीनी।
वा सुकुमारी सुहासिनी की, अलकावलि की ककही नहिं कीनी॥
लाज न बुद्धि सो काज कछू, बनई सब बात बिचित्र नवीनी।
काह कहूँ घनप्रेम तुम्हें, करताहुँ के नाम की लाज न लीनी॥
अष्टमी के निसि को ससि खास, अकास प्रकासन के हित दीनी।
वा सुकुमारी सुहासिनी की, अलकावलि की ककही नहिं कीनी॥