साँवरि सूरति मूरति मैन, मयंक लखे मुख जासु लजो है।
मोर पखौवन को सिर मौर, गरे बन माल धरे मन मोहै॥
सीकर सोभा सुधा बरसाय कै, आय हिये घनप्रेम अरो है।
बावरी मोहिं बनाय गयो, मुसकाय के हाय न जानिये को है॥
साँवरि सूरति मूरति मैन, मयंक लखे मुख जासु लजो है।
मोर पखौवन को सिर मौर, गरे बन माल धरे मन मोहै॥
सीकर सोभा सुधा बरसाय कै, आय हिये घनप्रेम अरो है।
बावरी मोहिं बनाय गयो, मुसकाय के हाय न जानिये को है॥