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स्याम पाकर निकुंज-संकेत / हनुमानप्रसाद पोद्दार

स्याम पाकर निकुंज-संकेत।
कही-’काल्हि मैया ! जाऊँगौ मैं इक सखा-निकेत॥
बहुत सिदौसी तहाँ जुरैगी बहुत सखनि की भीर।
होंगी भाँति-भाँति की क्रीभड़ा, खेलेंगे सब बीर॥
दा‌ऊ‌ऐ रखि लीजौ मैया ! घरहीं तुम परभात।
हौं तिनके संकोच खेल में खा जाऊँगौ मात’॥
मैया तैं हाँ करवा लीनी, उठे सिदौसी भोर।
चले कले‌ऊ करि, लै सँग इक सखा कुंज की ओर॥
मारग में भिड़ रहे मा दो दीखे साँड़ बिसाल।
छाय रही नभ धूलि-रासि, जुरि रहे बृद्ध अरु बाल॥
पकरि ग‌ए मोहन मग में ही, कहि न सके कछु बात।
रुकनौ पर्‌यौ बिबस, भय-चिंता बस कु‌िहला‌ए गात॥
प्यारी देखि रही होगी उत मेरी याकुल बाट।
कौन जुगुति भाजूँ कैसैं हौं, रचूँ कौन-सौ ठाट॥
सखी आय पहुँची इतने में, कह्यौ प्रिया-संदेश।
सुनत स्याम ह्वै चकित-व्यथित अति, रहे नैन अनिमेष॥
कह्यौ-’सखी नीकी ! तुम जाकर प्यारी तैं यौं कहियौ।
अटक्यौ हौं मारग में बरबस, चूक मती तुम गहियौ॥
तुम निषेध कीन्हौ आवन कौ, मो पै रह्यौ न जाय।
आय रह्यौ, अब ही पहुँचूँगौ तुहरे चरननि धाय॥