न आत्मीय मंच आयोजक
न शुभचिन्तक सम्पादक
न संरक्षक प्रकाशक
स्वांत: सुखाय बस चल रही है मेरी कविता
नदी में नाव-सी
वृक्षों में हवा-सी
धमनी में रक्त-सी
और बहुत कुछ वक़्त-सी
आप के रूप में
आज जो मिला है
एक अच्छा भावक
इस स्वांतः सुखाय के लिए
हर्षप्रद यही है
और प्रेरणादायक