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हरदा में / प्रेमशंकर रघुवंशी

जिस जिसने जो भी दिया मुझे इस हरदे में
उसे बताने से बेहतर है चुप रह जाना
शोक-गीत से उम्दा है,जीवन को गाना
वस्त्रहीनता से बेहतर रहना परदे में

सिवनी का बाशिन्दा हूँ परदेशी माना
जबकि हरदा और सिवनी भाई जुड़वाँ
दोनों ही की माँ रेवा है पिता सतपुड़ा
दोनों ही का आदिकाल से एक घराना

दोनों में से किसी एक को गड़ता काँटा
तॊ दूजे की आह सभी मिल सुन सकते हैं
दोनों के आँगन, खेत, खले सब लगते हैं
एक सरीखे, मानों इन्हें न अब तक बाँटा

इसीलिए अब हरदा में घर-सा रहता हूँ
मुक्त क़लम से दुनिया के सुख-दुख कहता हूँ ।