हर फ़सल चालाकियों की
आज की खेती !
स्वारथों के खेत
अनगिन
चापलूसी मेह
किसलिए हल-बैल-मेहनत
क्यों कसीली देह,
देह की बारीकियों की
आज की खेती !
तिकड़मों के बीज
उन्नत
यारबासी खाद
चुटकियों से उग रही यों
कागज़ी औलाद,
बाप से बेबाकियों की
आज की खेती !
7-10-1976