देखूँगी जाकर वहाँ पीली पाती
जो हवा से लिपट कर उड़ आई
ब्रह्माण्ड के उस ग्रह से
जहाँ बुद्ध का वास है । क्या भगवान
उसे यहाँ हरीतिमा प्रदान करेंगे ?
मिल गया जो उए यह जीवनदान
तो ढूँढेगी वह एक दूसरा जीवन जो
भटक रहा है अनन्तकाल से रेगिस्तान
के बवण्डरों में
खोज नहीं पा रहा वह अपनी सीमा
तय नहीं कर पा रहा वह अप॔नी दिशा
ढूँढ नहीं पा रहा वह अपना स्वत्व ।