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हासिल कर लेता हूँ / वेणु गोपाल

आप भीतर पहुँचते हैं और पाते हैं कि यह क्मरा

तो आपका नहीं है।

आप हड़बडा कर बाहर आते हैं और पाते हैं

कि यह आंगन भी आपका नहीं है।

और फिर मौहल्ला, शहर, मुल्क और दुनिया

कुछ भी आपका नहीं रहता।


तो आप क्या करते हैं? मैं तो उसे

अपनी बाहों में भर लेता हूँ और
इन्तज़ार करते होंठों को
अपने होंठ सौंप देता हूँ
और--
फिर से हासिल कर लेता हूँ--


अपने को और अपनी दुनिया को।


(रचनाकाल : 12.05.1975)