हरियाली का महासागर पोर-पोर
और आकाश का विस्तार समाए
एड़ी से भाल तक
तुम ही होतीं ओर-छोर
अब न तो किसी से
खिलने की विधि पूछना है
न हवा से बूँदा-बाँदी
और ना ही
किरणों से आँख-मिचौनी मुझे !
हरियाली का महासागर पोर-पोर
और आकाश का विस्तार समाए
एड़ी से भाल तक
तुम ही होतीं ओर-छोर
अब न तो किसी से
खिलने की विधि पूछना है
न हवा से बूँदा-बाँदी
और ना ही
किरणों से आँख-मिचौनी मुझे !