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बिरथा जळम गंवायौ / प्रमोद कुमार शर्मा
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आखर हो
भाखर बण‘र रहग्यौ !
जे कर होंतो संत कोई
नित रा बाग सजांतौ
जे कर होंतो परन्तं कोई
गीता नै अरथान्तौ !
जळम्यौ माटी ढोण
म्है झालर बण‘र रहग्यौ !
हो धरम रौ बीज
धरम नै पायौ नीं म्है
रह ग्यौ बंजर भौम
करम निपजायौ नीं म्है !
भूतां रै गांवां रो
ठाकर बण‘र रहग्यौ !
आखर हो .....
भाखर बणं‘र रहग्यौ !