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लूक / केदारनाथ अग्रवाल

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चम-चम चमक
रही है धूप
गरम हवा की
चलती लूक
भीतर बाहर
आग लगी है
सूख रहा है
खून पसीना
उड़ती है
चौतरफा धूल

रचनाकाल: १६-०६-१९७७, दोपहर : बाँदा