Last modified on 21 दिसम्बर 2010, at 17:11

सरण / प्रमोद कुमार शर्मा

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:11, 21 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद कुमार शर्मा |संग्रह=बोली तूं सुरतां / प्र…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


जणा करै कोई सागीड़ौ सो बिलाप
तद खुलै है बीं रौ द्वार !

जठै जा‘र आपां
पावां खुद नै निरवाळा !
हुवै आपणी हार !
अनै जको हारै
बो उतर जावै पार !