Last modified on 26 दिसम्बर 2010, at 06:26

चाय पीवती मां / राजेश कुमार व्यास

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:26, 26 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेश कुमार व्यास |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>जद कनै नीं …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जद
कनै नीं हुवै
आंख्या मांय
बसै मां।
छुट्टी आळे दिन
तावड़ै आवण तक
नीं जागै बिनणी
मां
नै कोई फरक नीं पड़ै
बैगी उठै
पण
बिस्तर नीं छोडै
डरै कठैई
हाको नीं हो जावै
चाय पीवण री हूंस होते थकै भी
बिनणी नै जगावै कोनी
बोली बाली उडीकै
बिनणी रै दिनूगै ने
घड़ी कानी सोधती
मांय सू सरमिजती
बिनणी उठै
कैवे
‘आज मोड़ो होयग्यौ
थानै चाय नीं दे सकी,
अणभार लावूं...’
चाय पीवती
मां साव कूड़ बोले
‘म्हारी आंख भी
आज
कीं
मोड़ी ही खुली।’