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मायड़ भासा / कन्हैया लाल सेठिया
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खोसली
लूंठा
जोरामरदी
होठां स्यूं
मिसरी मधरी
म्हारी
मायड़ भासा,
समझली
जनता नै
साव भेड़‘र बकरी
कुण सुणै
बापड़ी रा बोबाड़ा ?
भूखी है‘ क चरी
धायोड़ां नै दिखै
पड़ी
मींगण्यां निरी
बां रै भबूं एकसी
सूखी‘र हरी !
कुरस्यां रा लोभी
चाहीजै बां नै
तफरी
दरड़ै में पड़ो
संसकरती‘र कला
नेतावां नै
लागै मीठा
सत्ता रा गुलगुला,
बांध दी
लिखारां री पूंछ में
बेतुकी
अकादमी
लियां फिरै
भोलिया
आप आप रै
पोथां री डमी,
कठै है नाणां ?
आ ज्यावो कर‘र
रामरमी,
कोन आवै
भोटां रै भूखां नै
बठै तांई
अकल
नही सांभलै
जठै तांई
भासा रै सवाल नै
आखो जनबल !