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जाने किसकी साजिश है ये / कुमार अनिल

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जाने किसकी साजिश है ये जाने किसने फेंके हैं

मेरे शहर के दामन पर फिर ताजा खून के छींटें हैं



किसी सड़क पर नहीं सुरक्षा, कोई गली नहीं महफ़ूज

चप्पे चप्पे पर हत्यारे चेहरे बदले बैठे हैं



इस सीमा से उस सीमा तक चुप्पी ,सन्नाटा है

सूरज, चाँद सितारे, बादल सहमे सहमे लगते हैं



वे सब पंछी शौक जिन्हें था ऊँचा ऊँचा उड़ने का

छिप कर बैठे हैं पिंजरे में, बाहर आते डरते हैं



कल जब बिछड़े थे वे दोनों, पक्के दोस्त परस्पर थे

आज अगर मिलते भी हैं तो आँख तरेरे मिलते हैं



कौन धरा को धीर बंधाये, कौन बताये मौसम को

हरे भरे थे वृक्ष सभी जो इस आँधी में उजड़े हैं



गुलशन को शमशान बनाना जिनकी पहली ख्वाहिश थी

उन पर ही सब जुल्म हुए हैं, मयखानों में चर्चे हैं