Last modified on 6 जनवरी 2011, at 03:50

पीली साड़ी पहनी औरत / विमलेश त्रिपाठी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:50, 6 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमलेश त्रिपाठी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> सिंदूर की ड…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सिंदूर की डिबिया में बंद किए
एक पुरूष के सारे अनाचार
माथे की लाली
 
दफ़्तर की घूरती आँखों को
काजल में छुपाया
एक खींची कमान
 
कमरे की घुटन को
परफ्यूम से धोया
एक भूल-भूलैया महक
 
नवजात शिशु की कुँहकी को
ब्लाऊज में छुपाया
एक ख़ामोश सिसकी
 
देह को करीने से लपेटा
एक पीली साड़ी में
एक सुरक्षित कवच
 
खड़ी हो गई पति के सामने --
अच्छा, देर हो रही है
एक याचना
 
.. और घर से बाहर निकल ...