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पीली साड़ी पहनी औरत / विमलेश त्रिपाठी
Kavita Kosh से
सिंदूर की डिबिया में बंद किए
एक पुरूष के सारे अनाचार
माथे की लाली
दफ़्तर की घूरती आँखों को
काजल में छुपाया
एक खींची कमान
कमरे की घुटन को
परफ्यूम से धोया
एक भूल-भूलैया महक
नवजात शिशु की कुँहकी को
ब्लाऊज में छुपाया
एक ख़ामोश सिसकी
देह को करीने से लपेटा
एक पीली साड़ी में
एक सुरक्षित कवच
खड़ी हो गई पति के सामने --
अच्छा, देर हो रही है
एक याचना
.. और घर से बाहर निकल ...