भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दाढ़ी / नील कमल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:19, 6 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नील कमल |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> अपराधी नहीं काटते दा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपराधी नहीं काटते दाढ़ी
दाढ़ी संन्यासी भी नहीं काटते

दाढ़ी में रहता है तिनका
तिनका डूबने का सहारा होता है

दाढ़ी वे भी नहीं काटते
जिनके पास इसके पैसे नहीं होते

दाढ़ी सिर्फ दाढ़ी नहीं होती
यह इतिहास के गुप्त प्रदेश में
उग आई झाड़ी है

इस झाड़ी में छिपे बटेर
ढ़ूँढ़ रहें हैं शंकराचार्य
ढूँढ़ रहे हैं शाही ईमाम ।