कुछ ऐसे भी लोग मिले हैं
मिलकर भी जो नहीं मिले हैं
वह घमंड के टीले पर ही
पारिजात की तरह खिले हैं,
उनको मेरा हाथ जोड़कर नमस्कार है
बड़ी दूर से।
रचनाकाल: ०१-०४-१९६१
कुछ ऐसे भी लोग मिले हैं
मिलकर भी जो नहीं मिले हैं
वह घमंड के टीले पर ही
पारिजात की तरह खिले हैं,
उनको मेरा हाथ जोड़कर नमस्कार है
बड़ी दूर से।
रचनाकाल: ०१-०४-१९६१