पंख पा गई
मृदंग की आवाज़
बोलती चिड़िया
पकड़ से परे हो गई
और मैं
सुन्न औ सपाट
जमीन हो गया
तलुओं से लगी
न जाने कहाँ
किस छोर तक गई
रचनाकाल: ०१-०९-१९६७
पंख पा गई
मृदंग की आवाज़
बोलती चिड़िया
पकड़ से परे हो गई
और मैं
सुन्न औ सपाट
जमीन हो गया
तलुओं से लगी
न जाने कहाँ
किस छोर तक गई
रचनाकाल: ०१-०९-१९६७