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पंख पा गई मृदंग की आवाज / केदारनाथ अग्रवाल

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पंख पा गई
मृदंग की आवाज़
बोलती चिड़िया
पकड़ से परे हो गई
और मैं
सुन्न औ सपाट
जमीन हो गया
तलुओं से लगी
न जाने कहाँ
किस छोर तक गई

रचनाकाल: ०१-०९-१९६७