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खाली जेब और चाय का प्याला / केदारनाथ अग्रवाल

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प्लेट पर बैठा प्याला बुलाता रहा
मुँह से भाप छोड़कर
और हम पास खड़े
बिना पैसे के उसे देखते रहे।
जैसे कोई नेता अभिनेत्री को देखता है

आता न देखकर
मुहब्बत से भरा प्याला
कुछ ठंडा पड़ा
और एक ने आकर
उसे उठा लिया
मैंने देखा, उसने पिया
बड़े स्वाद से
और चला गया स्वयंबर जीतकर
मुझे छोड़कर
हाथ मलता

रचनाकाल: १९६७