भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पहिए / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:44, 9 जनवरी 2011 का अवतरण ("पहिए / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
पहिए
चलते हैं
चलते-चलते
फिर वहीं पहुँचते हैं
इंतजार में जहाँ
चल पड़ने को
तुले रहते हैं
टूटते-टूटते जब तक
टूट नहीं जाते
भूगोल की रगड़ खाते
समय से टकराते
रचनाकाल: ०५-०८-१९७१