भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निक्सन / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:14, 9 जनवरी 2011 का अवतरण ("निक्सन / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
बड़े खौफनाक लगते हो तुम
गुस्साए
खून में नहाए निक्सन
पैर से दबाए खड़े
दुनिया को।
रचनाकाल: २१-१२-१९७२