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प्रभात / केदारनाथ अग्रवाल

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रात अपने खेमे को उखाड़कर चली गई,
पानी के बँधे हुए जूड़े में सरोज खिले
और नई रोशनी जवान हुई।

रचनाकाल: संभावित १९५७