भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम / खुली आँखें खुले डैने / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:57, 21 जनवरी 2011 का अवतरण ("तुम / खुली आँखें खुले डैने / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
तुम
पूनम के
चंद्रोदय हो
मैंने
तुम पर
तन-मन वारा
जब
आँखों ने
तुम्हें निहारा
रचनाकाल: २१-०८-१९९१