भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम / खुली आँखें खुले डैने / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
तुम
पूनम के
चंद्रोदय हो
मैंने
तुम पर
तन-मन वारा
जब
आँखों ने
तुम्हें निहारा
रचनाकाल: २१-०८-१९९१