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मैदान में / केदारनाथ अग्रवाल
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मैदान में
अकुंठित खड़ा
नीम का
निर्भ्रांत गोलवा पेड़
वनस्पतीय बोध से
चहचहाता है
पत्तियाँ लहराता है
झूम-झूम जाने को
गाने को बुलाता है
जीने की लालसा जगाता
और बलि बलि जाता है।
रचनाकाल: २२-०९-१९९१