भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बेचैन बहारों में क्या-क्या है / क़तील
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:41, 9 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=क़तील शिफ़ाई }} Category:गज़ल बेचैन बहारों में क्या-क्या ह...)
बेचैन बहारों में क्या-क्या है जान की ख़ुश्बू आती है
जो फूल महकता है उससे तूफ़ान की ख़ुश्बू आती है
कल रात दिखा के ख़्वाब-ए-तरब जो सेज को सूना छोड़ गया
हर सिलवट से फिर आज उसी मेहमान की ख़ुश्बू आती है
तल्कीन-ए-इबादत की है मुझे यूँ तेरी मुक़द्दस आँखों ने
मंदिर के दरीचों से जैसे लोबान की ख़ुश्बू आती है
कुछ और भी साँसें लेने पर मजबूर-सा मैं हो जाता हूँ
जब इतने बड़े जंगल में किसी इंसान की ख़ुश्बू आती है
कुछ तू ही मुझे अब समझा दे ऐ कुफ़्र दुहाई है तेरी
क्यूँ शेख़ के दामन से मुझको इमान की ख़ुश्बू आती है
डरता हूँ कहीं इस आलम में जीने से न मुनकिर हो जाऊँ
अहबाब की बातों से मुझको एहसान की ख़ुश्बू आती है