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बच्चे और पौधे / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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लहलाते रहेंगे

आँगन की क्यारियों में

हिलाकर नन्हें- नन्हें पात

सुबह शाम करेंगे बात

प्यारे पौधे ।

पास आने पर

दिखलाकर पखुड़ियों की

नन्हीं-नन्हीं दतुलियाँ

मुस्काते हैं

फूले नहीं समाते हैं

ये लहलाते पौधे ।

मिट्टी, पानी और उजाला

इतना ही तो पाते

फिर भी रोज़ लुटाते

कितनी खुशियाँ !

बच्चे-----

ये भी पौधे हैं

इन्हें भी चाहिए

प्यार का पानी

मधुर –मधुर स्पर्श की मिट्टी

और दिल की

खुली खिड़कियों से

छन-छनकर आता उजाला ;

तब ये भी मुस्काएँगे

अपनी किलकारियों का रस

ओक से हमको पिलाएँगे

जब भी स्नेह –भरा स्पर्श पाएँगे

बच्चे पौधे, पौधे बच्चे

बन जाएँगे

घर आँगन महकाएँगे ।