Last modified on 25 फ़रवरी 2011, at 17:42

माटी का जलता / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:42, 25 फ़रवरी 2011 का अवतरण

माटी का जलता

माटी का जलता दीपक है
माटी में है मिलना
जीवन एक फूल बगिया का
पल दो पल का खिलना
सत्य नाम केवल ईश्वर है
झूठे जग के नाते
अंत समय आने पर फिर वे
साथ नहीं दे पाते
परदे पर फैली परछांई
परछांई का हिलना
धन दौलत आने जाने के
केवल एक बहाने
भक्ति त्याग संयम दुनिया के
सबसे बडे खजाने
पानी के तल उठे बबूले
पानी में है मिलना
सब कुछ यहां यहीं रह जाना
रंग बिरंगा दरपन
संग बटोही के जान बस
राम नाम का कंचन
पर्वत से गिरते झरनों का
सागर में जा मिलना
जीवन एक फूल बगिया का
पल दो पल का खिलना।