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माटी का जलता / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान

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माटी का जलता

माटी का जलता दीपक है
माटी में है मिलना
जीवन एक फूल बगिया का
पल दो पल का खिलना
सत्य नाम केवल ईश्वर है
झूठे जग के नाते
अंत समय आने पर फिर वे
साथ नहीं दे पाते
परदे पर फैली परछांई
परछांई का हिलना
धन दौलत आने जाने के
केवल एक बहाने
भक्ति त्याग संयम दुनिया के
सबसे बडे खजाने
पानी के तल उठे बबूले
पानी में है मिलना
सब कुछ यहां यहीं रह जाना
रंग बिरंगा दरपन
संग बटोही के जान बस
राम नाम का कंचन
पर्वत से गिरते झरनों का
सागर में जा मिलना
जीवन एक फूल बगिया का
पल दो पल का खिलना।