भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आहटें / वाज़दा ख़ान

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:51, 2 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वाज़दा ख़ान |संग्रह=जिस तरह घुलती है काया / वाज़…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वे आहटें मुझ तक नहीं आएँगी
वे उजाले के दीये मुझ तक नहीं आएँगे
आते हैं मुझ तक वे काफ़िले जो रेतीली
सरहदों में चला करते हैं

अक्सर रूहें पाँवों के निशान छोड़कर
क़ाफ़िले में ही आगे बढ़ जाती हैं

उन निशानों पर कभी तेज़ हवा ढूहें बनाती है
कभी उन्हें अपने संग उड़ाकर ले जाती है