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अपना मन / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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अपना मन तो बिल्कुल जोगी
जंगल और वीराना क्या ।
भीड़ नगर की नहीं खींचती
महलों का मिल जाना क्या।।
फुटपाथों पर नींद थी आई
गद्दों पर हम रातों जागे।
माया भागी पीछे पीछे
हम तो भागे आगे- आगे।।