जब से यह दुःख
रात-दिन मेरे पीछे
लगा है,
तब से मैंने जाना-
गैर हैं सब
एक यही तो मेरा सगा है
सगे जो होते हैं
जरा जरा सी बात पर
मुँह मोड़ जाते हैं,
हम चाहें उन्हें मनाना
पर वे साथ छोड़ जाते हैं
इन सुखों ने और सगों ने
यह दुःख ही है बेचारा
जो मेरे हर दर्द में
सिरहाने बैठा रहा है
रात -रात भर
साथ -साथ जगा है