Last modified on 13 मार्च 2011, at 16:24

दोहावली / तुलसीदास/ पृष्ठ 11

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:24, 13 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=द…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दोहा संख्या 101 से 110
श्री संकर प्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास।
ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुँ बास।101।

बिलग बिलग सुख संग दुख जनम मरन सोइ रीति।
रहिअत राखे राम कें गए ते उचित अनीति।102।

जायँ कहब करतूति बिनु जायँ जोग बिन छेम।
तुलसी जाँय उपाय सब बिना राम पद प्रेम।103।

लोग मगन सब जोगहीं जोग जायँ बिनु छेम
।त्यों तुलसी के भावगत राम प्रेम बिनु नेम।104।

राम निकाई रावरी हैं सबही केा नीक।
जौ यह साँची है सदा तौ नीको तुलसीक।105।

तुलसी राम जो आदर्यो खोटो खरो खरोइ।
दीपक काजर सिर धर्यो धर्यो सुधर्यो धरोइ।106।

तनु बिचित्र कायर बचन अहि अहार मन घोर।
तुलसी हरि भए पच्छधर ताते कह सब मोर।107।

लहइ न फूटी कौड़िहू को चाहै केहि काज।
सो तुलसी महँगो कियो राम गरीब निवाज।108।

घर घर माँगे टूक पुनि भूपति पूजे पाय।
जे तुलसी तब राम बिनु ते अब राम सहाय।109।

तुलसी राम सुदीठि तें निबल होत बलवान।
बैर बालि सुग्रीव के कहा कियो हनुमान।110।