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दोहावली / तुलसीदास / पृष्ठ 10

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दोहा संख्या 91 से 100


जौं जगदीस तौ अति भलो जौं महीस तौ भाग।
 तुलसी चाहत जनम भरि राम चरन अनुराग।91।

परौं नरक फल चारि सिसु मीच डाकिनी खाउ।
तुलसी राम सनेह को जो फल सो जरि जाउ।92।

हित सों हित, रति राम सों, रिपु सों बैर बिहाउ।
 उदासीन सब सों सरल तुलसी सहज सुभाउ।93।

तुलसी ममता राम सों समता सब संसार।
राग न रोष न दोष दुख दास भए भव पार।94।

रामहि डरू करू राम सों ममता प्रीति प्रतिति।
तुलसी रिरूपधि राम को भएँ हारेहूँ जीति।95।

तुलसी राम कृपालु सों कहि सुनाउ गुन दोष।
होय दूबरी दीनता परम पीन संतोष।96।

सुमिरन सेवा राम सों साहब सों पहिचानि।
ऐसेहु लाभ न ललक जो तुलसी नित हित हानि।97।

जानेें जानन जोइऐ बिनु जाने को जान।
 तुलसी यह सुति समुझि हियँ आनु धरें धनु बान।98।

करमठ कठमलिया कहैं ग्यानी ग्यान बिहीन।
तुलसी त्रिपथ बिहाइ गो राम दुआरे दीन।99।

बाधक सब सब के भए साधक भये न कोइ।
तुलसी राम कृपालु तें भलो होइ सेा होइ।100।