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तब भी आया वसंत / आलोक श्रीवास्तव-२

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तुम्हारे विछोह का दर्द लिए
जब लौटा मैं
तब भी वसंत आया

समय की गर्त में डूबता गया प्यार
अनुभव और व्यथा की परतों के नीचे
दबती गई भावनाएं

तुम्हारे बग़ैर भी मुस्करा रहा था
बादलों के बीच से चांद

तट पर लिखती थी नदी अपने छपाकों से
अस्फुट गीत ..
बिना तुम्हारी लटों को छुए, उसके किनारों से
उत्तर की ओर बही जा रही थीं हवाएं

तुमसे आश्ना तमाम रास्तों से
बोझिल पांवों मैं गुज़रता था
वसंत तब भी
सड़क पर लाल गुलमोहर
बिखरा रहा था ।