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फिर वही चेहरा / आलोक श्रीवास्तव-२

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मेरे तसव्वुर में फिर वही चेहरा है
वही आंखें हैं
वही क़दम

उतर आई है रात
सूना चांद
नभ में

जीवन यहां हारता है शायद
यहां कला, सोच, ख़्याल
यहां तक कि
सपने भी टूटे पड़े हैं

यह दुखों की रात है
शायद...
पर
तसव्वुर में वह चेहरा
अब भी है ।