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साल की आख़िरी रात / वेणु गोपाल

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एक छलांग

लगाई है
उजाले ने

अंधेरे के पार

पाँव
हवा में--

और

मैं
अपनी डायरी पर
झुका हुआ

उसके

धरती छूने का
इन्तज़ार
करता

००

रात के बारह बजने में

अभी

काफ़ी देर है।

(रचनाकाल : 31.12.1971)