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वे और हम / प्रेमशंकर रघुवंशी
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वे मुँह से बोलते
और हम मन से ।
वे आँख से देखते
और हम ज्ञान से ।
वे कान से सुनते
और हम चेतना से ।
वे नाक्से सूँघते
और हम अहसास से ।
वे स्पर्श से पहचानते
और हम अनुभूति से ।
वे सहारोंसे चलते
और हम अपने बल से ।