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केवल एक शरीर / वाज़दा ख़ान

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तुम्हारी नज़र में
एक लड़की नहीं हूँ मैं

एक भावना नही हूँ मैं
एक सौन्दर्य नहीं हूँ मैं
केवल एक शरीर हूँ मैं
एक परछाईं हूँ मैं
जिस पर से गुज़रकर
हर कोई चलना चाहता है

एक निःस्वार्थ भावना की
आकांक्षा होती है जब
तब स्वार्थ की अनंत
पगडंडियाँ डेल्टा बनातीं
हैं आलोक पथ में, भटकने लगती हैं
परछाई वजूद से अपने
क़तरा-क़तरा
गिरने लगती है हर शै
धार के मरुस्थल में

जहाँ तृष्णा है अनंत तृष्णा !!