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संवाद मृत्यु का था / शलभ श्रीराम सिंह

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संवाद
मृत्यु का था

मुँह में कौर
जीवन
फन बचाते साँप की तरह
बाँबी से दूर होने के दुख से
विचलित हुआ थोड़ा-थोड़ा
और
खड़ा हो गया
फुफकारने के अंदाज़ में

काल के विरुद्ध काल की तरह
बराबर की जोड़ का
साहस और बल लेकर
कौर गले के नीचे उतरा

संवाद
मृत्यु का होने के बावजूद।


रचनाकाल : 1991, विदिशा