मौत के कितने नाखून
कितनी गहराई तक
धँसे हैं मेरे सीने में!
दर्द की कैसी कैसी नदियाँ
टहल रही हैं होंठों पर
अपने तमाम मगरमच्छों के साथ !
और तुम
अपनी हँसी की तलाश में
मेरा चेहरा रौंद रहे हो !?
मौत के कितने नाखून
कितनी गहराई तक
धँसे हैं मेरे सीने में!
दर्द की कैसी कैसी नदियाँ
टहल रही हैं होंठों पर
अपने तमाम मगरमच्छों के साथ !
और तुम
अपनी हँसी की तलाश में
मेरा चेहरा रौंद रहे हो !?