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संवेदना की मौत पर / योगेंद्र कृष्णा

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अपने संपूर्ण जीवन के

शून्य का बोझ उठाए

तुम अपनी ही जमीन पर

भारी पड़ गए हो

जमीन पर दरारें पड़ गई हैं

तिनके-तिनके

तुम्हारी जमीन पर उगे

घोंसलों से अब

चिड़ियों ने फासले बना लिए हैं

तुम्हारी चेतना पर अब

किसी पेड़ का उगना

मना हो गया है

तुम नि:शब्द

आसमान देखते हो

कि बारिश की बूंदें

तुम्हारी संवेदना पर

अब नहीं टपकतीं

तुम्हारे आंसुओं से अब

कोई बर्फ की नदी

नहीं पिघलती