भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रतिदान / नेमिचन्द्र जैन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:13, 21 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नेमिचन्द्र जैन }} जब इधर होने लगे शत-खण्ड-से मन के तब तु...)
जब इधर होने लगे शत-खण्ड-से मन के
तब तुम्हारा आ रहा आह्वान छन-छन के
मौन ये पत्थर अचल प्रतिध्वनि नहीं उठती
भावनाएँ रह गयी हैं बन्दिनी बन के
बेसुरे इस कण्ठ से प्रिय गान क्या होगा
अब तुम्हारे प्रेम का प्रतिदान क्या होगा !
(बरुआसागर-आगरा मार्ग पर 1946 में रचित )